डॉ. भीमराव अंबेडकर का जीवन संघर्ष और सफलता की मिसाल है, लेकिन इस सफर में उन्हें समय-समय पर कुछ ऐसे मददगार भी मिले, जिन्होंने उनके सपनों को नई उड़ान दी। ऐसे ही एक महान शख्स थे – बड़ौदा रियासत के महाराजा सायाजीराव गायकवाड़ तृतीय।
आर्थिक संकट में मिला साथ
1913 का समय था, जब युवा अंबेडकर उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी जाना चाहते थे। मगर आर्थिक संकट उनके रास्ते की बड़ी रुकावट थी। ऐसे समय में उन्होंने बड़ौदा के महाराजा सायाजीराव गायकवाड़ से आर्थिक मदद की गुहार लगाई, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। महाराजा ने अंबेडकर को तीन वर्षों के लिए सालाना 11.50 पाउंड की स्कॉलरशिप दी, जो उस समय एक बड़ी रकम मानी जाती थी।
पढ़ाई पूरी कर लौटे तो भी जुड़ा रहा रिश्ता
पढ़ाई पूरी कर जब अंबेडकर भारत लौटे, तो उन्होंने महाराजा से मुलाकात की। उनके बीच संबंध केवल एक छात्र और दाता तक सीमित नहीं रहे, बल्कि आगे चलकर महाराजा ने अंबेडकर को बड़ौदा राज्य की विधान सभा का सदस्य भी बनाया। उनके लिए विशेष कानून बनवाए गए, जिससे अनुसूचित जातियों को चुनाव लड़ने का अधिकार मिल सका।
समाज सुधार में अग्रणी शासक
सायाजीराव गायकवाड़ केवल अंबेडकर के सहायक नहीं थे, बल्कि वे अपने समय के सबसे प्रगतिशील और समाज सुधारक शासकों में से एक थे। उन्होंने बालिकाओं की शिक्षा को बढ़ावा दिया, प्राइमरी शिक्षा को अनिवार्य और मुफ्त किया, विधवाओं के पुनर्विवाह को समर्थन दिया और दलितों के मंदिरों में प्रवेश के लिए रास्ते खोले। उन्हें भारत में पुस्तकालय आंदोलन का जनक भी कहा जाता है।
विद्वानों और क्रांतिकारियों के संरक्षक
महाराजा सायाजीराव ने न सिर्फ अंबेडकर को बल्कि दादाभाई नौरोजी, ज्योतिबा फुले, लोकमान्य तिलक और महर्षि अरविंद जैसी हस्तियों को भी संरक्षण दिया। उनके मन में आज़ादी के लिए लड़ने वाले क्रांतिकारियों के प्रति सहानुभूति थी, जिससे ब्रिटिश सरकार अक्सर असहज हो जाती थी।
गांधी और कांग्रेस से भी जुड़ाव
कहा जाता है कि उन्होंने महात्मा गांधी और कांग्रेस को भी समय-समय पर सहयोग दिया। 1911 में जब किंग जॉर्ज भारत आए, तब उन्होंने दरबार में औपचारिकता की परवाह न करते हुए किंग को पीठ दिखा दी – यह उनके आत्मसम्मान और स्वाभिमान का प्रतीक था।
एक विरासत, जिसने दिशा बदली
महाराजा सायाजीराव गायकवाड़ की मदद ने न सिर्फ डॉ. अंबेडकर के जीवन की दिशा बदली, बल्कि भारतीय संविधान के निर्माण में भी अप्रत्यक्ष योगदान दिया। अगर वे उस समय अंबेडकर की मदद नहीं करते, तो शायद भारत को वह महान संविधान निर्माता न मिल पाता।
सायाजीराव गायकवाड़ जैसे दूरदर्शी शासकों की भूमिका हमारे सामाजिक इतिहास में हमेशा याद रखी जाएगी।