हाल ही में म्यांमार में आए भीषण भूकंप ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया है। वैज्ञानिकों के अनुसार, इस भूकंप से निकली ऊर्जा 300 से अधिक परमाणु बमों के बराबर थी। इस प्राकृतिक आपदा ने इनवा ब्रिज समेत कई बड़ी इमारतों को मलबे में बदल दिया और सैकड़ों परिवारों को हमेशा के लिए खामोश कर दिया।
विशेषज्ञों के मुताबिक यह भूकंप सागाइंग रेखा के साथ एक स्ट्राइक-स्लिप फॉल्ट के कारण आया – जो पृथ्वी की अंदरूनी हलचलों का परिणाम है। म्यांमार के बाद जापान ने भी एक बड़े भूकंप की चेतावनी जारी की है। लेकिन खतरा सिर्फ इन देशों तक सीमित नहीं है। भारत भी एक बड़े भूकंप के मुहाने पर खड़ा है।
भारत भी है गंभीर खतरे में
वैज्ञानिक दशकों से चेतावनी देते आ रहे हैं कि भारत में 8 या उससे अधिक तीव्रता का भूकंप आ सकता है, जो उत्तर भारत को भारी तबाही में झोंक सकता है। भू-भौतिकीविद् रोजर बिलहम के अनुसार, हिमालय क्षेत्र में हर कुछ सौ वर्षों में एक विनाशकारी भूकंप आता है। लेकिन पिछले 70 वर्षों में ऐसा कोई भूकंप नहीं आया है, जिससे अनुमान लगाया जा रहा है कि बड़ा झटका कभी भी आ सकता है।
देश का 59% हिस्सा भूकंप की जद में
भारत का लगभग 59 प्रतिशत क्षेत्र भूकंप संभावित क्षेत्र में आता है। उत्तराखंड, हिमाचल, बिहार और पूरा पूर्वोत्तर इसका प्रमुख उदाहरण हैं। इसके अलावा दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे महानगर भी खतरनाक फॉल्ट लाइनों पर बसे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, दिन के समय आए किसी बड़े भूकंप में जान-माल की भारी हानि हो सकती है।
भूकंप से ज़्यादा ख़तरनाक हैं भारत की इमारतें
भारत में इमारतें भूकंप से अधिक जानलेवा साबित हो सकती हैं क्योंकि अधिकतर निर्माण भूकंपरोधी मानकों के अनुसार नहीं किए गए हैं। स्कूल, अस्पताल, बिजली संयंत्र जैसी ज़रूरी सुविधाएं भी भूकंप के लिहाज से सुरक्षित नहीं हैं। 2001 में गुजरात के भुज में आए भूकंप और 2015 में नेपाल में आए भूकंप से भारत को अरबों डॉलर का नुकसान हुआ था, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
जापान-चिली से सीखने की जरूरत
जापान और चिली जैसे भूकंप-प्रवण देशों ने न केवल सख्त बिल्डिंग कोड लागू किए हैं बल्कि त्वरित प्रतिक्रिया प्रणाली और सामुदायिक जागरूकता पर भी जोर दिया है। भारत में भी भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) ने भूकंप-रोधी निर्माण के नियम बनाए हैं, लेकिन उनका पालन न के बराबर होता है।
तैयारी ही बचाव का उपाय है
भारत को अब जागने की जरूरत है। पुरानी और कमजोर इमारतों को फिर से बनाना, पुलों और सार्वजनिक भवनों को पहले से मजबूत करना, सुरक्षित खुले स्थान चिन्हित करना, स्कूलों में जागरूकता फैलाना और अपार्टमेंट तथा कार्यालयों में भूकंप अभ्यास करना बेहद जरूरी हो गया है। हर घर में आपातकालीन भूकंप किट होनी चाहिए।
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हिमालयी भूकंप हो सकता है सबसे विनाशकारी
वैज्ञानिकों का मानना है कि जब हिमालय क्षेत्र में भूकंप आता है, तो यह ज़मीन पर आता है – जिससे इसका प्रभाव अधिक भयावह होता है। भविष्य में हिमालय में 8.2 से 8.9 तीव्रता का भूकंप आने की आशंका है, जो करोड़ों लोगों को प्रभावित कर सकता है। यह म्यांमार की हालिया त्रासदी से भी कई गुना ज्यादा विनाशकारी हो सकता है।
अब भी समय है – चेत जाएं
भारत के पास विज्ञान, तकनीक और विशेषज्ञता की कमी नहीं है। जो कमी है वह है इच्छाशक्ति और योजना बनाकर ठोस कार्रवाई करने की। अगला बड़ा भूकंप निश्चित है, लेकिन हम यह तय कर सकते हैं कि इससे कितने लोगों की जान बचेगी। अब समय आ गया है कि हम सतर्क हों और तैयारी शुरू करें, क्योंकि प्रकृति चेतावनी नहीं देती – वह सीधे वार करती है।