संविदाकर्मियों के सबसे बड़े संगठन ‘राजस्थान पंचायत शिक्षक विधालय सहायक संघ’ के प्रदेशाध्यक्ष नरेन्द्र चौधरी और संयोजक रामजीत पटेल ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए सीधा सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि सरकार संविदाकर्मियों के नियमितिकरण की मांगों को अनदेखा कर रही है और सेवा नियमों के नाम पर सिर्फ समय निकाल रही है। अगर सरकार को संविदाकर्मियों की परवाह होती, तो मनीष सैनी की आत्महत्या के बाद तुरंत कोई ठोस कदम उठाया जाता। लेकिन सरकार ने केवल मानदेय बढ़ाकर संविदाकर्मियों की समस्या को हल्के में लिया है, जो उनके जले पर नमक छिड़कने जैसा है।
“पहले भी सैकड़ों संविदाकर्मी कर चुके हैं आत्महत्या”
नरेन्द्र चौधरी का कहना है कि मनीष सैनी की आत्महत्या कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी प्रदेश में सैकड़ों संविदाकर्मी अपनी मांगों की अनदेखी और मानसिक दबाव के चलते आत्महत्या कर चुके हैं, लेकिन सरकारें इन घटनाओं पर मौन साधे बैठी हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि अब प्रदेशभर के संविदाकर्मी फिर से एकजुट होकर स्थायीकरण की मांग को लेकर सरकार पर दबाव बनाएंगे।
चौधरी ने बताया कि इसके लिए एक रणनीति तैयार कर ली गई है। 1 अक्टूबर को मनीष सैनी के श्रंद्धाजली कार्यक्रम के रूप में शहीद स्मारक पर प्रदेशभर के संविदाकर्मी जुटेंगे और इस आंदोलन की शुरुआत करेंगे। इसके बाद मशाल को जिले और संभाग स्तर तक ले जाया जाएगा।
उपचुनाव में सरकार को उठाना पड़ सकता है नुकसान
विशेषज्ञों का मानना है कि मनीष सैनी की आत्महत्या और संविदाकर्मियों का आक्रोश सरकार को आगामी विधानसभा उपचुनाव में भारी पड़ सकता है। संविदाकर्मियों का कहना है कि सरकार संविदाकर्मियों की समस्याओं का समाधान निकालने की बजाय समय निकालने की नीति पर काम कर रही है। इससे संविदाकर्मियों में रोष बढ़ता जा रहा है, जो उपचुनाव में सरकार को नुकसान पहुंचा सकता है।
"हम लड़ेंगे, जीतेंगे और अपने हक की लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाएंगे"
संविदाकर्मियों के नेता रामजीत पटेल ने कहा, “हम सरकार के सामने फिर से एकजुट होकर अपनी मांग रखेंगे। हमारी मांग स्पष्ट है—नियमितिकरण। अब हमें किसी बहाने की जरूरत नहीं है, हमें अपने हक की लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाना है।”
संविदाकर्मियों की इस रणनीति और आंदोलन से प्रदेश की राजनीति में हलचल मच गई है। अब देखना होगा कि क्या सरकार संविदाकर्मियों की इस एकजुटता के सामने झुकती है, या फिर एक बार फिर संविदाकर्मियों को अपने हक की लड़ाई के लिए संघर्ष करना पड़ेगा।
“मनीष के बलिदान को नहीं होने देंगे व्यर्थ”
आंदोलन की अगुवाई कर रहे संविदाकर्मियों ने संकल्प लिया है कि मनीष सैनी के बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देंगे। उन्होंने कहा कि मनीष की आत्महत्या एक चेतावनी है कि अब संविदाकर्मी और इंतजार नहीं करेंगे। 1 अक्टूबर को होने वाले श्रंद्धाजली कार्यक्रम में प्रदेशभर के संविदाकर्मियों का जुटना यह दर्शाता है कि अब वे अपने हक के लिए हर हद तक जाने को तैयार हैं।
ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इस आक्रोश को शांत करने के लिए क्या कदम उठाती है, या फिर संविदाकर्मियों का यह आंदोलन प्रदेश की राजनीति में कोई नया मोड़ लेकर आता है।
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