उत्तर प्रदेश के 69,000 शिक्षक भर्ती मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच द्वारा मेरिट लिस्ट रद्द करने के बाद स्थिति काफी जटिल हो गई है। 13 अगस्त 2024 को, लखनऊ बेंच ने सरकार को आदेश दिया कि वह बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 और आरक्षण नियमावली 1994 का पालन करते हुए तीन महीने के अंदर एक नई मेरिट लिस्ट तैयार करे। इस आदेश से चयनित और अचयनित अभ्यर्थियों के बीच तनाव और असंतोष बढ़ गया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मेरिट लिस्ट को रद्द करते हुए यह पाया कि भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण नियमों का उल्लंघन हुआ है। विशेषकर ओबीसी वर्ग को 27% आरक्षण मिलने की जगह 16.2% और एससी वर्ग को 3.86% की जगह उचित आरक्षण नहीं मिला।
इसके चलते 19,000 अभ्यर्थियों के चयन को अवैध मानते हुए उन्हें सूची से बाहर करने की बात की गई है। इस मुद्दे पर विशेष अपील 172/2023 के वकीलों ने आरोप लगाया है कि सरकार जानबूझकर लिस्ट बनाने में देरी कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई याचिकाओं में चयनित अभ्यर्थियों ने लखनऊ बेंच के आदेश के खिलाफ अपील की है, जिसमें उन्होंने कहा है कि
नई मेरिट लिस्ट तैयार करने से उनके भविष्य को खतरा हो सकता है। सामान्य वर्ग के चयनित अभ्यर्थियों का कहना है कि इस आदेश से उनकी नौकरी पर संकट आ सकता है। इसके विपरीत, अचयनित अभ्यर्थियों ने भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, उम्मीद करते हुए कि उच्च न्यायालय की जांच से उन्हें न्याय मिल सके।
इस बीच, लखनऊ में प्रदर्शनकारियों ने विरोध प्रदर्शन किया और इस दौरान पुलिस द्वारा लाठीचार्ज किया गया। प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि सरकारी अधिकारियों की लापरवाही और नियमों की अनदेखी के कारण उनके भविष्य पर प्रश्नचिह्न लग गया है।
उम्मीद की जा रही है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में जल्द कोई महत्वपूर्ण निर्णय लेगा, जो चयनित और अचयनित अभ्यर्थियों के भविष्य को स्पष्ट कर सके।