'कहीं भी भंडारा खाना सही है या ग़लत' या फिर 'हर किसी के यहां जाकर भंडारा खाना चाहिए या नहीं'? अक्सर ऐसे प्रश्न लोगों के मन में चलते रहते हैं, लोग भंडारा खाने के विषय में सोचते हैं। आज आप जानेंगे की 'श्री देवकीनंदन ठाकुर' Bhandara Khana Chahie Ya Nahin के संबंध में क्या कहते हैं। जानें Bhandara Khane Se Kay Hota Hai?
भंडारा खाना चाहिए या नहीं?
Shri Devkinandan Thakur ने 'कहीं भी भंडारा खाना चाहिए या नहीं' इस विषय में एक प्रवचन में कहा था.
"आज तक खाने की इच्छा पूरी हुई, अगर अभी कथा थोड़ी देर रोक दें, खा लो फिर सुनेंगे है तो लोग कहेंगे हां हां लाओ दे दो कुछ, और खाने की स्थिति तो ये हो गई है कि कोई भी खिला दे, सब का खा लेते हैं बिना ये सोचे समझे खिलाने कि खाने लायक है भी या नहीं। एक और बात बता दें आप लोगों को, मानोगे, जब तीर्थ में जा और वहाँ भंडारे बट रहे हो, मत खाया करो। ऐसे जीभ के चटोर आदमी है कोई भी बांट रहा हो उन्हें खाने से मतलब है। जो बाट रहा है वो अन्न के साथ-साथ अपना पाप भी बांट रहा है, और जो खा रहा है वो अन्न के साथ साथ उसके पाप भी खा रहा है, खाओ बेटा खाओ। दो ही जगह खाना चाहिए,
दो विद भोजन की जाए राजन विपत पड़े या प्रीत
तेरे प्रीत न मोह आपदा यह बड़ी अनरीत
भोजन दो स्थिति में किया जाता है या तो भोजन कराने वाले के मन में भाव हो अथवा भोजन करने वाले के ऊपर विपत्ति हो, न तो मेरे ऊपर कोई विपत्ति है और न तेरे मन में भाव है तो बता मैं कैसे तेरे यहाँ के भोजन करता। हम लोग तो किसी के भी यहाँ जाके खड़े हो जाते हैं और खा लेते हैं। तो आज ये बात नोट कर लो जब भंडारे में जाके किसी के भी यहाँ, तो समझ लो उसके पाप खा रहे हो और अपने पुण्य प्रदान कर रहे हो उसे।
एक और बात कितना भी खिला लो खाने से इच्छाएँ पूरी होती नहीं हैं, इच्छाओं का बढ़ते रहना ही मृत्यु है। इच्छाओं को पहचान लेना ही ज्ञान है। इच्छाओं का त्याग करना वैराग्य है। और मन में कोई इच्छा उठे ही न, मन में कोई इच्छा हो ही ना यही मुक्ति है।"
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